एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तनहाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब माँझी की रुसवाई भी
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
-गुलज़ार
मेरी पसंद की कविताएं, प्रेरक विचार व प्रसंग, नैतिक कथाएँ, संस्मरण, लेख, हिन्दी अनुवाद... और न जाने क्या-क्या... इस खज़ाने में आप भी अपने हीरे-मोती शामिल कर सकते हैं... कृपया इस पते पर अपने ई-मेल करें... surendersml@gmail.com
Tuesday 11 August 2009
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Wah !
ReplyDeletevery nice . i am a big fan of guljaar
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